You are currently viewing ज़िन्दगी

ज़िन्दगी

वो खड़ी है हर एक मोड़ पर, लेने नया एक इम्तिहाँ
तत्पर हूँ मैं, प्रतिबद्ध भी करने को उसका सामना

यूँ तो किसी के भाग का, ना छींन सकता ये जहाँ
लेकिन मैं हूँ मुस्तैद, करना है हासिल जो लक़ीरों में भी ना लिखा

आज कोई मोल नही मेरा, लेकिन चमकूँगा एक दिन ‘सितारें’ की तरह
बहुत ऊंचा ऊँढूगा, देख ही लूँगा क्या है और आसमाँ से बड़ा

ज़िन्दगी से हारना, जिन्दगी नहीं है
क्या है ज़िन्दगी? ये जानने को हूँ निकल पड़ा

घर छोड़ने से पहले झुकता हूँ कदमो में “माँ” के
“माँ”मेरी आशीष देती ‘जा बेटा कुछ कर बड़ा

अकेला हूँ सफर में अपने,हमसफर नहीं है ‘माँ’
हाँ दुआऐं तेरी साथ हैं, ये क्या कोई कम है भला

मंजिल अभी दूर है कोसों, मगर मैं सफर में हूँ
आये चुनौतियां कितनी भी न हारूँगा मैं अब हौसला

झुकायेगा सर हर शिखर मेरी मेहनत कर आगे और वक़्त भी होगा एक दिन प्रीत मेरा
पहुंच ही जायेगा ‘फ़र्श से अर्श’ तक “माँ” तेरी दुआओं से ‘नवनीत’ तेरा

नवनीत बघेल