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ख़्वाब और नींद

तुम जो ख़्वाब में आओ तो मुझको बता देना
मैं नींदों को बुला लूँगा..

वो जो हम मिले थे कभी, आब शारी में
वादे किए थे कुछ, बेख़याल ख़ुमारी में

तेरी आँखो में मैंने देखा है, इश्क़ इतराते हुए
जुल्फें बिखरी तो समझा है, जवानी लहराते हुए

तू जो बोले तो चहक जाता था चमन
तेरी साँसों से ही महक जाता था ये बदन

जब तेरे होने से ही मेरे होने का एतबार सा था
समझ मेरी जाँ तब हमें कुछ प्यार सा था

वो जो तुम हो आज कहीं, अपने जहाँ में गुम सी
मेरी यादों में आती तो हो, पर अब कम सी

तुम्हें याद करके अब मैं रोता नहीं हूँ
तुम्हें पता तो क्या होगा, पर अब मैं सोता नहीं हूँ

आज जो मेरे ख़्वाब में आओ तो बता देना
मैं नींदों को बुला लूँगा …

– अंकित गोयल