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हमारी कहानी

सूखे नीम के पत्तों पे लिखी गई

अनसुलझे शब्दों से पिरोई गई

साल दर साल कई पत्तों पे सजी

जब जवां हुई तो मीठी निमोली सी हुई

कई बारगी हवा के थपेड़ो में उलझी

हर सावन वो फिर हरी हुई

जाने क्यों वो कड़वी ही रह गई

शायद निमोली की मिठास कुछ कम रह गई

मेरे आँसुओ की कड़वाहट कुछ ज्यादा मिल गई

हमारी भी एक कहानी थी

जो नीम के सूखे पत्तों पे लिखी गई

– सचिन बिल्लोरे ‘आस’