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रात वाली चाय

ठंड वाली रात को, जब शहर की सड़कें
शोरगुल से कुछ दूर, आराम के तलाश में है
जब कुछ बेघर, थकान चूर करने को बैचेन
शहर के फुटपाथ पर, नींद की फिराक में हैं

तब नींद से कुछ बेवफाई करके मैं आज
नींद की सौतन चाय से मिलने निकल पड़ा
यूं तो दोनों ही मेरे सच्चे इश्क हैं मगर
वक्त बेवफाई मैं दोनों से बराबर करता हूँ

चाय की पहली चुस्की, थकान दूर कर देती है
ताजगी देती, जब वो गले को गले लगाती है
और साथ ही गरमाहट तन में छोड़ जाती है
और हम दुनिया से बेखबर एक दूसरे में डूब जाते हैं

यूं चाय से मुलाकात तो रोज होती है
हर सुबह, हर शाम
लेकिन ठंड वाली रात की मुलाकात, वाह!
आज ऐसी ही एक मुलाकात फिर हुई

रात को कुछ सर्द ठंड हवाओं के साथ
किराये के मकान से तयशुदा एक टपरी पर
जैसे दोस्त गले में हाथ डाले चल रहें हो मेरे साथ
और मैं बेसब्र, बेताब चाय से मुलाकात को

उसकी छुअन से ठंड ने मुझ से रूखसत ली
मुझ में खोने को, मुझमें डूबने को, मुझ से मिलने को
हलक से यूं नीचे उतरी, जैसे बारिश का पानी सूखी जमीं पर
मैं भी उसमें गुम, एक सुकून सा है अब
मेरे लबों को, मेरे हलक को, मेरे मन को

यकीन मानिए ये सुकून ना महबूब के साथ में है
ना मयखाने में बिताई नशे की रात में हैं
हां, चाय से ये इश्क मुझे तहदिल से कबूल है
और नींद से ये बेवफाई मुझे खुशी से मंजूर

मुझे चाय से इश्क मंजूर है
रात वाली चाय…एक बार फिर

– अजय कोरडे