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मुक्तक

सोचते हो !
संकटों से क्षीण होकर
क्रुद्ध हूँ मैं,

रंजिशों में उपजे द्वेष के
कहीं विरुद्ध हूँ मैं
तमतमातम आँधियों के
ज्वार से न मुझको आंक
कल भी मैं ही बुद्ध था और
आज भी हाँ, बुद्ध हूँ मैं ।।

– पंकज कसरादे