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तो चले आना

हो मयस्सर इस जहां में खुशियां तो ढूंढ लाना
कोई अपना कहे दिल से तो ज़रूर बताना
वो तीर से चुभते अलफ़ाज़ बाकी है ख्यालों में
उन ख्यालों में तुम अपनी जगह बनाना
सुकून की तलाश फिर भी हो, तो चले आना

मंज़िल की बात नहीं ये तो रास्ता है पुराना
बेबसी और खुद्दारी का यूँ नहीं है ये फ़साना
जंग ज़ाहिर है खुद की सब से यहाँ पर
इस जंग में तुम मेरा साथ निभाना
सुकून की तलाश फिर भी हो, तो चले आना

मेरे अफसानों में कभी खुद को झलकना
समझ आये तो ये मुझको भी समझाना
की रिश्ता तस्सवुर से हकीकत ऐसे ही नहीं बनते
उस हकीकत पर तुम अपनी मोहर लगाना
सुकून की तलाश फिर भी हो, तो चले आना

खुद से बेहतर ही खुद को है बनाना
जो जुड़े है मुझसे उनको साथ साथ है चलाना
मेरे राज़ ही में मेरे मर्ज़ की दवा बने हैं
उन राज़ों को तुम दिल से अपनाना
सुकून की तलाश फिर भी हो, तो चले आना

– नायाब हुसैन