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रोना चाहता हूँ

रोना चाहता हूँ,
अंदर ही अंदर की बजाय
आँखों से समंदर बहाकर

रोना चाहता हूँ,
मन ही मन मौन की बजाय
हवा में हाथ-पैर उछालकर

रोना चाहता हूँ,
अकेले एकांत की बजाय
बीच चैराहे में ही दहाड़ मारकर

रोना चाहता हूँ,
सिर्फ गालों को गीला करने की बजाय
किसी और के कंधो को सराबोर कर।

हाँ, मैं रोना चाहता हूँ।

– रोशन सास्तिक