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मैं और इश्क

जो मैंने उसे इस कदर सजा रखा है
लोग कहते हैं उसे खुदा बना रखा है

मैं जानता हूँ उसे वो हमदर्द नहीं मेरा
मैंने फिर भी उसे गैरों से बचा रखा है

मेरी रूह में मेरा अब कुछ नहीं बाकी
जर्रे जर्रे में मैंने उसे ही बसा रखा है

वो मिले न मिले ये बात है मुक्कदर की
एक जख्म है उसे ही नासूर बना रखा है

और क्यूँ दे कोई मेरे मिजाज में दखल
मैंने इसे ही अपना मिजाज बना रखा है

जुगनुओं से कहो औकात में रहें जल जायेंगे
मेरे इश्क को मैंने आफताब बना रखा है..

-शुभम साहू