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मुखौटा

मैंने अक्सर लोगों को
मुखौटे में ही देखा
प्यार के, दोस्ती के …..
न जाने कितने ही मुखौटे….

इक रोज़
मैंने इन मुखौटों के सामने
आईना रख दिया
उस दिन से
जो मुखौटे बचे हुए थे
मेरी जिंदगी में वो भी चले गये
कम से कम इनके रहने से
मैं अकेला तो नही होता था,

अब सोच रहा हूँ
मैं भी कोई मुखौटा पहन ही लेता हूँ |

– दीखित