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मुँह फेरकर चली न जाना

इन टूटी फूटी राहों पर
इन झुकी हुई बांहों पर
हिम्मत तुम बन जाना
मुँह फेर कर चली न जाना !!

गीली पलकों पर बैठी
निराशाओं की कहानी एक
उसको आशा तुम दे जाना
मुँह फेरकर चली न जाना !!

बिखरे बिखरे मोती देखो
फर्शों पर गुस्से से पसरे
उनको संधि डोर तुम थमा जाना
मुँह फेरकर चली न जाना !!

जिंदा हूँ तब तक हँसता हूँ
मर जाऊँ भी तो मुस्का लूँगा
बस थपकी देने गालों पर तुम आ जाना
मुँह फेरकर चली न जाना !!

– कार्तिक सागर समाधिया