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महाकाल

मैं महाकाल हूँ
मैं जीवन का सत्य हूँ और मैं ही जीवन का अंत हूँ
काल का शंखनाद हूँ, जीवन का राग हूँ
मैं ही तो भोले हूँ और मैं ही भंडारी हूँ
मैं ही तो निर्गुण और मैं ही निरंकारी हूँ
त्रिशूल हाथ में लिए हूँ, कंठ में विष समाहित है
जटाओं से निकल रही है गंगा मेरे,
चाँद मुकुट सा सुशोभित है
भस्म का मैं धारी हूँ, मैं ही त्रिपुरारी हूँ
मैं जो बस रहा कैलाश में वही निवासी हूँ

तांडव से करे जो विनाश वही त्रिनेत्रधारी हूँ
भूतप्रेत का मैं स्वामी हूँ, विपत्तियों का मैं अन्तर्यामी हूँ
उमापति हूँ मैं और मैं ही त्रिदेवों में शिव स्वामी हूँ
रुद्राक्ष से मेरे मोक्ष है, मैं नागधारी हूँ
डमरू से मेरे होता गर्जनाद है,
भांग ही बस मेरा प्रसाद है
मेरे तांडव से लाता अकाल हूँ,

हाँ मैं महाकाल हूँ, हाँ मैं ही महाकाल हूँ

– तनुश्री उपाध्याय