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मन

कितना उज्ज्वल शीतल निर्मल
दर्पण सा मन
तेरे कर्मों का प्रतिबिम्ब
निर्णय जिसका सार्वभौमिक
तेरी चेतना का आवास

प्रतिपल तेरे सही गलत को चुनौती देता
परम शक्ति का आधार
निर्गुण सगुण की सीमाओं से परे
चिंतन का एकमात्र साधन

प्रेम का अविरल गोमुख
अनुभूति का वैश्विक स्वरूप
हजार स्मृतियाँ संजोये
बसन्त और पतझड़ की

तेरा एकमात्र सखा
तिमिर या उज्ज्वल पथ पर
शब्दों से परे जिसकी आवाज
हजार कोलाहल के बीच जिसकी तीव्र वाणी
बोलती नहीं फिर भी गुंजायमन है
अनादि काल से सतत प्रवाहमय..

– श्वेता पाण्डेय