You are currently viewing बस्तर का पत्रकार

बस्तर का पत्रकार

जान ही तो थी
भले जोखिम में थी
बस्तर के पत्रकार की
एक अदद कहानी के लिए
जुगत भिड़ा रहा था…
रक्तरंजित स्थल पर
वहीं, कुछ लाशें, बिखरी पड़ी थी
जिसमें से कुछ
प्रशासन के नुमाइंदे थे
और कुछ नक्सली
लेकिन थे तो
वो इंसान ही न
करते भी क्या वो
कुछ कर्तव्य के प्रति
समर्पित
कुछ अधिकारों के लिए लड़ते
इंसान
वहीं राजधानी में बैठ कुछ नेता
सत्ता की मलाई खा रहे थे
तो कुछ मलाई के लिए
दूध के दांव को गरम कर
रक्त की होली खेल रहे थे
उन्हें फर्क नहीं पड़ता था
वो किसके दूध से सिंचित
इंसानों की बलिवेदी
पर अपनी सियासत
चमका रहे थे
और वो जो
कहानी के पीछे
भाग रहा था
सोच रहा था
नाम मिलेगा या पैसा
यहाँ वही पुराना
मुहावरा
पापी पेट का सवाल है बाबा
इतरा रहा था |

– सौरभचन्द्र पांडे