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फिर एक सुबह

फिर एक सुबह लोगों को घरों से निकलते देखा है
रात के दहशतग़र्द ख्वाबों को फिर से चलते देखा है
एक हादसा ही तो था छोटा सा उस रास्ते पर
फिर एक बेटे को माँ से बिछड़ते देखा है
कल यकीन से वो बादल मंडराया था छत पर
आज अचानक उसे फिर धूप से मरते देखा है

तमाशबीन थे, जो अपने लोग ही थे
कुछ मरहम तो कुछ ज़ख्म कर रहे थे
जिनसे उम्मीद थी नजदीकियों की
वो अब भी फासलों से चल रहे थे
कुछ माँगा भी नहीं किसी से उस वक़्त, फिर भी
जरुरत में सबको साफ़गोई से मुकरते देखा है
फिर एक सुबह लोगों को घरों से निकलते देखा है
रात के दहशतग़र्द ख्वाबों को फिर से चलते देखा है

ये जो चेहरे पे हल्का सा निशान था उसके
उसकी बेबसी में कही छुप गया था
पता नहीं और कितने घाव थे ऐसे अंदर
जो भी था उसकी दुनिया में रुक गया था
जब घर लबरेज था खुशियों से उसका
तभी मातम को सीढ़ियों से उतरते देखा है
फिर एक सुबह लोगों को घरों से निकलते देखा है
रात के दहशतग़र्द ख्वाबों को फिर से चलते देखा है

घर में अब कोई नई ज़िंदगी कैसे आएगी
जो एक थी वो सबकी लेकर चली गयी
कुछ रात के हंसी ठहाके ही तो होते थे
अब दिन-रात बस एक चीख़ ही निकलती है
बेपर्दा थे उसकी तरह दूसरों के भी रौशनदान
उसके वाक़ये पर कहीं और उसने मज़मा लगते देखा है
फिर एक सुबह लोगों को घरों से निकलते देखा है
रात के दहशतग़र्द ख्वाबों को फिर से चलते देखा है..

– अजय गौतम