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चट्टान

तुम सिर्फ मुस्कुरा रहे हो
और मैं,
रिसती हूँ रोज़
तुम्हें याद नहीं पर
मुझे याद है
तुम्हारा फरेब
जिसके दाग मेरे अंतर्मन में छपे हुए हैं
जिससे मैं और मेरी आत्मा क्षतिग्रस्त है
लेकिन तुम हो कि,
मुस्कुरा रहे हो
समझ आ रहा है मुझे कि
तुमने अपने खालीपन को भरने के लिए
साथ लिया था मेरा
और एक दिन
तुम हवा से बनकर कहीं उड़ गए
मुझसे बेख़बर हुए
मैं ताकती रही
वो गली
वो रास्ता
वो सड़कें
और वो दरवाजा
जहां रहती थी
तुम्हारे आने की उम्मीद
लेकिन तुम्हारी बिसरी यादों के अलावा
तुम लौट के नहीं आए
इक चट्टान ही तो थी मैं
जिसको तुमने अपनी खुशबू से पिघलना सिखलाया
लेकिन अब ये चकनाचूर हो गई
तन्हाईयों, शिकायतों, और ख़ामोशी के चलते…

– विभा परमार