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तुम और ये बारिश

तुम किसी एक शय में ढल जाओ
तो बिल्कुल बारिश लगोगी
गुमसुम, उमस भरी
मुझे परेशान करने वाली
फिर तेज हवाओं के साथ
कड़कती दमकती
खन-खन करके बरसती हुई
बरस के निकलने तक
कीचड़, फिसलन
और ना जाने
कितनी तबाही बरपा चुकी होगी

मुझे पता है
ये उमस कल फिर होगी
कल फिर तुम बरसोगी
और, कल फिर मैं
फिसल के गिर जाऊंगा
फिर भी
ये सब भूल के मैं
तुम्हारी उसी खन-खन को सुन रहा हूं
शायद खिड़की खुली रह गई थी
दिल के कमरे की
उम्रभर छीटों के साथ
एक ठंडी हवा आती रही ..

– राजन पांडेय