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तुम और प्रेम

तुम्हारी लंबी जुल्फें
क्या रात या घने जंगल के इतर भी कुछ हो सकती हैं?
तुम प्रेमिका और पत्नी के बीच की कड़ी हो सकती हो?
जैसे शाम के चैथे पहर में आसमान में
लाल और नारंगी के बीच का कोई अनामी रंग!

मैं जो देखना चाहता हूँ
तुम वो ही बन बनकर आती रहोगी कब तक?
कब तक तुम उसके विपरीत होकर
दूसरों द्वारा बुनी गयी उत्थान की पोटली में छुपती रहोगी
इस भ्रम को क्यों न दोनों हटा दें कि दुनिया सुंदर है

लोग कहते हैं नजर में सुंदरता होती है
तो क्या जगह या व्यक्तित्व गौण हो जाते हैं?
कभी कभी सुंदरता गौण के रास्ते का अंतिम छोर होती है।
मैं क्यों होऊँ गौण भला?

ताकि यह जुल्फें, पोटली और रंगों के भ्रम से
दूर हटकर गौण के रास्ते पैदल चला जाये।
उस रास्ते मे प्रकाश होगा न?
फिर उलझ गई न तुम जुल्फों, रंगों और पोटली में।

– बिकास के शर्मा