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तुम आना कभी

तुम आना कभी ख्यालों में मेरे
कभी टोकना कैसे जीने लगी हो तुम
कभी रोकना, कैसे बेतरतीब हँसने लगी हो तुम
कभी रुठना कि, क्यों नहीं तुमनें विश किया मुझे
जन्मदिन इतना, इतना भी अब याद नही रहता?
कभी मनाना,
तुम हो तो नकचढ़ी पर
बहुत खूबसूरत है मुस्कान तुम्हारी
कभी पूछना कि क्यों भूलने लगी हो मुझें
सच-सच बताओ
क्यों मरने लगी हो घुट-घुट कर
कभी समझना,
क्यों बेरंग हो गई है
जिन्दगी मेरी तुम्हारे बिना
कि तुम आना कभी ख्यालों में मेरे।

आस्था मिश्रा