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तुम्हारी खातिर | 3

भावों से भावों में घुसकर
भावों को ही तौल दिया अब,
होंठो से एक गरम लगाकर
शब्दों को भी खोल दिया अब,

आने वाली नस्लें
मुझको बेशक ठुकरा जाये तो?
गुस्ताखी खुद जो की नही हैं
उनका दोष लगाये तो?

फिर भी हँसते हँसते हम
लो; होठों में विष डाल चले,
बस एक तुम्हारी जीत की खातिर
हम अपनों से हार चले|

– पंकज कसरादे