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जुर्म का बाजार है

ये मौन की है कालिमा
ये रक्त रंजित वायु है
यहाँ कदम कदम छल प्रपंच है
यहाँ मित्रता का दंश है
यहाँ धर्म की बस खेती है
मानव से नही कोई प्रीति है
भाषा यहाँ विष गरल की है
चेहरे यहाँ दोहरे से है
पहचानना दुष्कर कर्म है
बिक रहा ईश्वर चौराहे पर
असहाय मानव धर्म है
सफलता तेरी शत्रु है
दुश्मन तेरे हजार है
यहाँ ढोंग है बस प्रेम का
कुचलने को हर कोई तैयार है
मीत नहीं है यहाँ पर कोई
ये खंडित होता एक रिश्ता सा है
खंडहरो का गाँव है ये
नर पिशाचो का मायाजाल है
कैसे पहचानोगे तुम किसी के
यहाँ हर कोई जी का जंजाल है

आदतन तुम तोड़ोगे कैसे
ये रिश्तों की बेड़िया
मानव मानव में प्रेम नही
स्वार्थ की दीवार है
जो प्रसिद्ध है वो ईश है
जो गुम है अंधकार है
हिंसा की है दासता
यहाँ शान्ति विलुप्त है
यहाँ करोड़ों चढ़ते देवालय में
गरीब यहाँ अभियुक्त है
जो अन्न देता वो गरीब है
मदिरालयों में भीड़ है
अभियुक्त यहाँ आदर्श है
निर्दोष यहाँ कैद है
बचपन यहाँ मायूस है
हर तरफ शैतान की आँख है
यहाँ शव की कीमत नही
सीने में ढोता उसे लाचार है
यहाँ जुर्म का बाजार है
यहाँ जुर्म का बाजार है

– श्वेता पांडेय