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जिंदगी की बात करते हैं

एक शाम यूं ही झील के किनारे बैठकर
जिंदगी की बात करते हैं
पानी में बनती खुद की परछाई में
खुद को तलाश करते हैं
एक शाम झील किनारे बैठकर
जिंदगी की बात करते हैं

पानी पर पड़ती ढलते सूरज की किरणें
आसमान में चहचहाते पंछी
दूर कहीं से आवाज देती कोयल
घरों को लौटते बैलों की घंटी
कल दोबारा लौट आने का वादा करते हैं
एक शाम झील किनारे बैठ कर
जिंदगी की बात करते हैं

कभी चलें हम इस तरह झील के किनारे
मानों आती जाती हर लहर हमारा नाम पुकारे
आ मालूम करें पल-पल जिंदगी के यूं कैसे गुजरते हैं
एक शाम झील किनारे बैठ कर
जिंदगी की बात करते हैं

सच है धीरे-धीरे छा जाएगा अंधेरा
पर ये तय है कि कल को लाएगा नया सवेरा
कल सूरज फिर निकलेगा
हम अंधेरे से क्यों डरते हैं
एक शाम झील किनारे बैठ कर
जिंदगी की बात करते हैं..

-असीम श्रीवास्तव