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जादूगरनी

वो लड़की जादूगरनी थी। सचमुच की जादूगरनी। जब उस से प्रेम हुआ था तब मैंने कहा था “तुम्हारी आँखों में जादू है। एक तिलिस्म है जो मुझे मोम बना देता है” । मेरे इतने कहने पर वो खिलखिला कर हंसती थी। और मैं उसकी खिलखिलाहट के जादुई शोर में बेसुध हो जाता था। उसके साथ कई साल यूँ ही बेसुधगी में बीते।

मुझे होश उस दिन आया जब उसे मैंने एक तांगे पर बैठ कहीं दूर जाते हुए देखा। वो एक बहुत सुंदर सा तांगा था। ऐसे तांगे मैंने विदेशी फिल्मों में देखे थे जिनमें राजकुमारियां सवारी किया करती थी। मैं हैरान था की आज के जमाने में जहां कहीं जाने के लिये इतने तेज साधन मौजूद है वो एक तांगे पर चढकर कहाँ जा रही। मैं आश्वस्त था कि वो तांगे पर बैठकर दूर नही जा सकती। वो 5 घण्टे भी उस तांगे में सफर करे तब भी मैं उसे ढूंढ लूंगा।

मैं घर की खिड़की से उसे जाते हुए देख रहा था। उसका तांगा आगे कुछ दूर जाकर हवा में उड़ने लगा। तांगे से बंधे वो सफेद घोड़ो के पंख उग आए। मेरे आंखों के सामने ही वो कुछ ही देर में हवा में ओझल हो गयी। मैंने उसे जाते हुए बस खुद से इतना कहा कि इसे इस तरह नही जाना चाहिए था।

मैं अपने कमरे में गया और उसकी चीजे तलाशने लगा। उसकी सारी चीजें घर में ज्यों की त्यों पड़ी थी। पर मुझे दिल हीं दिल में ऐसा लग रहा था कि वो बहुत कुछ कीमती लेकर चली गयी है। किसी लेखक कवि की कहानियों में इस्तेमाल हुए मेटाफर से भी ज्यादा कीमती। मैं बेतहाशा अपने घर के सारे कमरे में चीजें ढूंढने लगा। घर से धूल का एक कण भी गायब नही था। मैनें दुनिया भर के छोटी चीजों के देवताओं को गाली दी और अपने कमरे के बिस्तर पर बैठ गया। अब भी घर में सारी चीजें मौजूद थी। बस मेरे सामने जो आईना था उसमें मेरा अक्स नही था।

एक खाली आईने को देख कर मैं बहुत पछताया। मुझे कभी उसे जादूगरनी नहीं कहना चाहिए था।

अरहान असफल