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ख्वाहिश वाली रेल

जिन्दगी रेल की पटरी के माफिक हो चली है, 
हर दिन जिंदगी की पटरी पर,
हजारों ख्वाहिशों की ट्रेन गुजरती जा रही हैं ,
न ख्वाहिशें ठहर रही हैं और न ज़िंदगी

कभी जब अचानक,
किसी आउटर पर कोई ख्वाहिश वाली ट्रेन
कुछ देर के लिये रूकती हैं न
तो सामने अचानक से ग्रीन सिग्नल पाकर
मुसीबत की मालगाड़ी आ जाती है, और

ख्वाहिश वाली ट्रेन से टकराकर
जिन्दगी को लहूलुहान कर देती हैं ,

और फिर;
मैं इस जिंदगी और ख्वाहिशों के बीच
अकेला पड़ा रहता हूँ।
फिर से नए सफ़र के इंतजार में |

– पंकज कसरादे