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ख्वाहिश

आज फिर ये कोरा कागज पुकार रहा था
जो बिखरा है शायद उसे संवार रहा था

जैसे हर टुकड़ा कुछ कहना चाहता हो
टूट कर भी साथ रहना चाहता हो

इस सहमें हुए दिल को भी सुकून से रहना था
आज जो भी था अंदर इसे सबकुछ कहना था

जज्बात स्याही बन कर बह रहे हैं
आज ये कागज भी चीख-चीख कुछ कह रहे हैं

लगता है जैसे सब कुछ थम सा गया है
मुस्कुरा कर भी ये चेहरा नम सा गया है

रेत की तरह कुछ कीमती हाथों से छूट सा रहा है
जुड़ कर भी ये हौंसला अब टूट सा रहा है

ऐ जिन्दगी तुझसे बस यही गुजारिश है
दर्द में भी मुस्कुराते रहें हम बस इतनी सी ख्वाहिश है..

-शिल्पी गुप्ता