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ख्वाब

मैं घूमना चाहता हूं उन तंग गलियों में
जहां की भीड़ में केवल बचपन के खेल हों

उस खचाखच बाजार में
जहां खूब शोर-शराबा होता हो

मैं जाना चाहता हूं उस दुकान पर
जहां लंबी कतारें लगती हों

मैं खोना चाहता हूं उन रास्तों में
जहां से आने का रास्ता मुझे न पता हो

मैं देखना चाहता हूं वो मंजर
जिसे दुनिया का आखिरी कोना कहते हैं

मैं बसना चाहता हूं ऐसी बस्ती में
जहां सब अनजान हों

मैं थिरकना चाहता हूं ऐसी धुन पर
जो कभी न सुनी हो

मैं सोना चाहता हूं ऐसी नींद में
जो दिनभर की थकान के बाद आती है

मैं जीना चाहता हूं ऐसी जिंदगी
जो आपाधापी में कहीं छूट सी गई है

मैं महफूज रखना चाहता हूं ये ख्वाब
जो मैं साझा कर रहा हूं..

– लोकेश सिंह सम्राट