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खोया सम्मान

तन पे लगे ज़ख्मों को..
मलहम भर जाएगा..
मन मस्तिष्क पे लगे जख़्म..
आखिर कौन भर पाएगा??
क्या आएगा ये समाज भरने उन्हें..
या और कुरेद जाएगा..
दिखावे के लिए आँखों के आँसू पोंछ..
कहीं ये मन को तो नही रुलाएगा??
कुछ लोग लड़ेंगे हमारे लिए..
कोई ना कोई आकर फिर कीचड़ उछाल जाएगा..
कुछ लोग कसेंगे ताने भी..
क्या कोई उनकी मानसिकता को सुधार पाएगा??
लड़ते रहेंगे फिर भी हम ये सोच..
कभी ना कभी हमें भी इंसाफ मिल जाएगा..
बदलेगी समाज की नज़रें भी कभी..
पर क्या हमें हमारा खोया सम्मान मिल पाएगा??

– पारुल दुबे