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ख़ामोशी

क्यों खड़े हो निशब्द से,
कुछ कहते क्यूँ नहीं ?

आँखे बोलना चाहती हैं बहुत कुछ
जुबाँ साथ देती क्यूँ नहीं ?

तुम्हें देख, तुम्हारी रूह से पूछा है मैंने
इतना पीर क्यूँ समेट रखा है अंदर, बहते क्यूँ नहीं?

ये बात मेरी सुन, तेरी आँखों ने कहा मुझसे
तुम पढ़ लो मुझे यूँ ही, दर्द तुम मेरा समझते क्यूँ नहीं..

गर गिर गया मेरे अश्क का कतरा
तो सैलाब यूँ ही आ जायेगा..

गर टूटा बाँध सब्र का
खामखाँ सब तबाह हो जायेगा..

रहने दो दर्द को अंदर मेरे
गर फूट गया मैं, सब व्यर्थ में बह जायेगा…

ख़ामोशी से मुझे सब सहने दो,
गर एक बार फिर टूट गया मैं,

फिर मुझसे संभला ना जायेगा…

– यशा जैन