You are currently viewing कुछ खाने को है?

कुछ खाने को है?

वह संवेदनशील था..
उदास हो जाता था वह
धारावाहिक में
किसी के प्रेम विलाप को देख कर
पड़ोस के घर में हुए कुत्ते की मौत पर
नही खाया उसने
तीन दिन खाना…
और पिता के जेब से पांच सौ रूपये गिर जाने पर
उसने ढुलका दिए थे
दो आंसू…

अब लाशों के बोझ से
थक चुके कन्धों की थकान
झाड़ कर…
सूखी आँखों के पीछे कंही छुपी
भावुकता को त्याग कर…
शमशान से लौट रही भीड़ से कट कर
वह दुकान पर पीता है अदरक वाली चाय,
और घर पर आ कर उसका पहला प्रश्न होता है

‘कुछ खाने को है?’


-आशु मिश्रा