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कशिश

जिक्र हर वक़्त का होता है
मसलन तुम और तुम्हारे जहन
तुम और तुम्हारा दिल
तुम और तमाम इबादत
तेरी उम्मीद
तेरा इंतजार
तेरे इजहार से इंकार
हर लम्हे में
हर दफा रातों में दिनों मे उजाले
कब तक
कहां तलक
कभी-कभी नहीं
अक्सर आंखों में नमी मे
उस आसमां से इस जमीं मे
उफ्फ
कसक कर पकड़ा है
कम्बख्त ये जाती नही
हाय मै जवानी नही
झट से फिसल जाए
मै कशिश हूँ
सर से पाव तक सवर जाए
ऐ चाँद…..

– कामिनी कुमारी दास