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उपलब्धि

मेरी शुरुआत और मृत्यु
प्रेम ही है, या कहूं
प्रेम से ही है
तुम देखो तो ज़रा
ये आल्ता और दिया
आल्ता का रंग कैसे धीरे-धीरे गहरा रहा है
बिल्कुल
प्रेम की तरह
प्रेम भी धीरे धीरे ही गहराता है
और ये दिया जो फैला रही है रोशनी
पूरे जहां में

कुछ ऐसा ही प्रेम भी होता है
जो गहराता भी है और फैलता भी है
गहराते और फैलते प्रेम में
मिलते हैं कई अनगिनत
कटीले नागफनी
और सूखे रेगिस्तान
जो अपने कटीलेपन और सूखेपन से
प्रेम को करते हैं छिन्न-भिन्न
मगर प्रेम ठहरकर करता है इन्तज़ार
इनके थकने का
और फिर गिराता है बौछारें
प्रेम की
मुक्त करता है इनको, इनकी गर्माहट से
देता है ठंडक जीवनपर्यंत के लिए
यही ठंडक है
मेरी उपलब्धि
मेरे जीवन की!

-विभा परमार