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सफ़र

मैं एक ज़र्द हो चुके पीले पत्ते की तरह
हो चुका हूं अपने जीवन में।
शाख से टूटकर अभी अभी गिरा हूँ
और गिरकर सीधे जा पहुँचा हूँ
एक बहते दरिया में।
हाय अफसोस!
ठहर भी नही सकता हूँ कहीं पर।
दरिया की रवानी के साथ साथ
बस चले जा रहा हूँ,
सुना है तुम्हारे शहर में समंदर है,
साहिल पर चले आना
अगर कभी ये दरिया समंदर में जा मिले
तो आऊंगा मैं तुम्हारे पास।
तुम्हारे पैरों को चूमने।

– पंकज कसरादे