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अन्नदाता

सामग्री आजीविका की जुटाते,
देख रहा हूँ यह क्या व्यथा,
कार्यभार कारण आयु घटती तेरी,
अकेले बैठ आँसू क्यों पीता है कृषक- पिता !

बलिदान, श्रम, सेवा को मनुष्यता के मापदंड बना,
व्यथितों के घाव मरहम लगाता है ,
अन्न उपलब्ध करवाए तू ही सबको,
पर समुचित सम्मान तुझे अभी न मिला !

ग्राम स्वराज शब्द नया नहीं है ,
समष्टि हित साधन हेतु तुमने ही दिया,
अपव्यय पर रोक लगा मितव्यय का पाठ ही ,
मानव हेतु मानवता का मार्ग प्रशस्त किया !

सामग्री जीवन की जुटाते अभी,
देख रहा हूँ यह क्या दुर्दशा ,
दोषपूर्ण आर्थिक नियोजन को सत्ताओं के,
नि:शब्द -बेशब्द झेल रहा है कृषक पिता !!

– हरिशंकर कंसाना