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अन्तिम विदाई

कभी किसी
अन्तिम विदाई को देखूँ
तो मुझे महसूस होता है
कि मैं रिक्त हूँ
बहुत संवेदनाए है मेरी ऐसी
जिसे बहा देना चाहती हूँ

उस रोज जब मैं तुमसे
आखिरी बार मिली थी
तुम्हें दुबारा देखने की ख्वाहिश ने
मुझे बेचैन कर रखा था
पर कितनी मंहगी सी इच्छा थी मेरी
कि खुदा भी हाथ जोड़कर
बैठा मेरे सामने

तुम्हारे अलविदा कहने की घड़ी थी
और मेरी आँखें अपलक
तुम्हें निहार रही थी
तुम्हें शीघ्रता थी जाने की
और मैं रोकने का प्रयास करती
तुम्हारे न होने की शून्यता
और मेरे मन की रिक्तता

मैं भरसक प्रयास करती हूँ
इस व्योम से बाहर निकलने की
पर फिर कोई दिख जाता है
अन्तिम पथ पर अग्रसरित
और मैं रह जाती रिक्त रिक्त रिक्त…

– श्वेता पाण्डेय