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अनकही मोहब्बत

तुम जब मेरे साथ नहीं होगी
तब कौन होगा कहना मुश्किल है
लेकिन कुछ गवाही रखी है साथ
और आगे भी कुछ गवाह बताऊंगा

जैसे तुम्हारी चाहत
को रखा है आसमान आँखों में
जैसे तुम्हारी यादों
को रखा है रूह की गजल में
जैसे तुम्हारी बातों
को रखा है अपनी नादानियों में
जैसे तुम्हारी हाथ की लिखावटों
को डायरी के पन्नों के बीच में
जैसे तुम्हारी ख्वाहिश
को बचा रखा है जीवन की भागदौड़ में

हम दोनों दो जिस्म हैं अलग अलग
पर दोनों की तन्हाई एक है
चाँद की चाँदनी में
फैली हुई सी अपने शहर में
अनजान अनदेखी नींद में…

– कार्तिक सागर समाधिया