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खाली ख़त

किसी खाली खत की तरह हो तुम बिलकुल
जिसको पढ़ा भी जा सकता है
जिस पर लिखा भी जा सकता है
जिसकी सुरभि को महसूस किया जा सकता है
अंतर्मन के एहसासों तक
इन्ही दिल की सदाओं के सहारे बातें होती हैं
तुमसे बिलकुल खाली खत की तरह

मन करता है चुरा लूँ तुमसे, तुम्हारी आँखें
जो किसी सागर किनारे सीप सा छोड़ गया
बिलकुल किसी खाली खत की तरह

मन करता है बैठकर सुनूँ इस चेहरे को
जिस पर छोड़ गया है कोई
अपनी प्रेम कहानी काले तिल सा
निशानी के तौर पर….
बिलकुल किसी खाली ख़त की तरह

मन करता है इन जुल्फों के सहारे सोया जाए
सदियों तक मां का आँचल समझकर
जो चाँद की चांदनी में नजर आता है
एक चमकते हुए मोती की तरह ….

तुमसे कभी मिला नहीं लेकिन
फिर भी मिलता है एक दोस्त का एहसास
किसी किताब में रखे हुए
एक खाली खत की तरह ….

– कार्तिक सागर समाधिया