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खूंटा

लिपटी हुई है
मुझमें वो तेरी सारी
इच्छाएँ……
भावनाएं…..
वासनाएँ……
खूँटे सी लटका दी जाती है
रात और दिन
दिन और रात
जब तू चाहे……
और मेरी तृष्णा चुकती चली जाती है
गुजरी हुई तारीखो की तरह
जब तू मुझको मांगे
मै हाथ बांधे खड़ी हो जाती हूँ
अनिच्छा से…..
निःशब्द….
और तू मुझ में चलता जाता है
अनवरत……
अनवरत……….
अनवरत……………