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नासमझ

इज़हार-ऐ-इश्क़ करना उसे भी नहीं आया
मुझे भी नहीं आया
इक़रार-ऐ-दिल समझ उसे भी नहीं आया
मुझे भी नहीं आया

हर रोज़ ये दीदार-ऐ-मोहब्बत
और कई कई बार मुलाक़ातें
अल्फ़ाज़ बयां करना उसे भी नहीं आया
मुझे भी नहीं आया

उँगलियाँ भी थक गयी रोज़ गिनते
जुदाई के महीने और दिन
यादों के सहारे जीना उसे भी नहीं आया
मुझे भी नहीं आया

तस्वीर का सफर आँखों से शुरू
दिल पर जा ठहर गया
क्यूं नज़रें चुराना उसे भी नहीं आया
मुझे भी नहीं आया |

– अनुजा श्रीवास्तव