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किताब

वो थी, एक किताब ,
जिसे पढ़ना चाहा कई लोगों ने
और कोशिश भी की।

पर कोई पढ़ नहीं पाया पूरा,
कई तो, पन्नें मोड़ कर चले गए
और फिर लौटें ही नहीं ।

देर ही सही, कोई और आया
जिसने उन सारे मुड़े हुए
पन्नों को खोलकर,
उसकी इबारत को ठीक किया ।

फिर ; उसने पढ़ा उसे और
उतार लिया दिल में अपने,
उस किताब का
एक एक पन्ना ,एक एक हर्फ़ ।

– पूजा उपाध्याय