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नज़्म

उसने एक प्रेम किया
और उस प्रेम में
कई बार धोखे खाये
वह तकिये में मुंह छुपा के रोया हर रात
कभी अँधेरे भीड़ भरे कमरे में
सिसकी की आवाज़ निकलने के बाद
वह खाँसा बहुत तेज़-तेज़
कुछ बोला धीमी आवाज़ में
जिससे की उसे नींद में बड़बड़ाता हुआ माना जाये
उसने गालियाँ दी
वह नहीं बन सका एक आदर्श प्रेमी
अपनी प्रेमिका के जीवन में
उसके पूर्व प्रेमियों की वापसी को लेकर वह सतर्क रहा
हर संदिग्धता पर उसने सवाल उठाए
हर नये दुःख पर उसने उत्सव मनाया
शराब के नशे में उसने सदी की सबसे रूमानी बातें की
वह स्वयं हमेशा वफ़ादार रहा
उसने उस प्रेम को आख़िरी प्रेम मान कर जिया
उसने वे सपने देखे
जिनमें उसने बच्चों के नाम भी रख लिए थे

फिर एक दिन
उसे ज़िद्दी कहा गया,
जाहिल कहा गया
और कहा गया – कि ये प्रेम नहीं है

प्रत्युत्तर में उसने कुछ नहीं कहा

भीड़ भरे कमरे के लोगों ने बताया
की पिछली रात वह खाँसा था बहुत तेज़
बड़बड़ाया था धीमे-धीमे

आशु मिश्रा