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इंतज़ाम

दिनभर की मेहनत से थके शरीर रात में खाने के सामने या बिस्तर पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे थे, परन्तु कुछ जीवन अभी भी भटक ही रहे थे । ऐसा ही एक जीव था किशन। ओम के दरवाजे पर किसी की क़दमों की आहट महसूस होती है । दरवाजे पर सामने किशन था।

“ओम भाई दस हज़ार रुपये चाहिए।”

“नहीं किशन कल मैं हफ्तेभर की टूर पर निकल रहा हूँ। मुझे रूपये खुद ही चाहिए होंगे। “

दो साल पहले जब मैं सेकंड ईयर इंजीनियरिंग के एग्जाम ख़त्म होने पर जयपुर से घर आया था तब पता चला था की बचपन के दोस्त किशन की शादी हो चुकी है।

बचपन की दोस्ती होने के बावज़ूद भी उसने समाज की रूढ़ियों की वजह से मुझे शादी में नहीं बुलाया था। उस के बुलाने पर भी मैं उस के घर का नहीं खा पाता गाँव में हम ऊँची जात वाले नीची जात के यहां बड़े बुजुर्गों के कहे अनुसार नहीं खाते है। ये बात उस को भी पता थी शायद इसी कारण नहीं बुलाया।

शादी की बधाई देने के लिए मैं घर की छत पर पहुँचा और किशन को आवाज दी ,शादी के बाद किशन के पिता ने उसे अलग कर दिया था। इस कारण किशन अपने पिता के दूसरे घर में आ गया जो की मेरे घर के बगल वाला ही घर था। आवाज सुनकर एक औरत के कपड़ो में समायी हुई लड़की छत पर आयी । वो किशन के पत्नी थी। घूंघट के अंदर से आवाज आयी की वो तो अभी काम पर गये हुए है शाम को लौटेंगे। ठीक है जब आये तो कहना की सुनील आया है । ” जी”

“रमेश भाई दस हज़ार रुपये उधार चाहिए। “

“किशन यार रूपये तो में देता मगर अभी कल मैंने नया फ़ोन खरीदा है, उसका पेमेंट देना है इसलिए अभी नहीं दे सकता । “

शाम को किशन जब घर आया तो छत पर आ गया और मुझे आवाज़ दी मैं भी छत पर पहुँच गया। फिर वही यादों और मज़ाक का दौर शुरू हो गया । किशन ने अपनी पत्नी से भी पहचान करवाई और हमारे बीच की शर्म धीरे-धीरे खत्म हो रही थी। मैंने किशन से पूछा “

“अचानक शादी कैसे हो गई भाई”

“क्या करे भाई तुम्हारी तरह पढ़ाई में दिम्माग तो रहा नहीं था। और यहाँ तो पढ़ाई को ही जीवन की सफलता का आखरी सत्य समझा जाता है। एक बार आप फ़ैल हुए तो फिर आप के जीवन पर चिंतन शुरू हो जाता है। आपके लिए काम की तलाश का दौर शुरू हो जाता है। और ऊपर से अगर आप के घर में कोई बूढ़ा इंसान है तो फिर आपकी शादी का इंतजाम भी हुआ समझो । जब वो अपना पैर कब्र में लटका समझते है तो पोते पोतियों की शादी देखने की इच्छा जोर पकड़ने लगती है । और अपने मरते माँ -बाप की इच्छा को मानना परमधर्म मान कर मेरे जैसे की क़ुरबानी चढ़ा दी जाती है।

“भाभी आप की शादी की इच्छा थी।”

“सवाल ये है की लड़की की इच्छा से फर्क किसे पड़ता है। “

“सही कहा भाभी अपने यहाँ लड़की की इच्छा से किसी को मतलब नहीं रहता है। वैसे किशन भाई क्या काम करते हो आजकल ?”

” कपड़ा मील में काम मिला है इलेक्ट्रिकल मेंटेनेंस का आठ दस हज़ार महीने का मिल जाता है।

किशन से बात खत्म कर मैं छत से कमरे में लौट आया और बैठ कर सोचने लगा कि कितना अंतर है मेरे और किशन के जीवन में कारण क्या है इसका ……

ओम और रमेश से मिली निराशा ने उसे और भी तोड़ दिया था, किशन सोच रहा था कि शायद पिछ्ली बार का उधार समय पर नहीं चूका पाने की वजह से ये लोग इस बार उधार नहीं दे रहे है। रात के 9 बज चुके थे। अब क्या प्रकाश को पूछना ठीक होगा। पर पैसे की आवश्यकता तो है प्रकाश के दरवाजे पर पहुँच कर आवाज दी तो प्रकाश दरवाजे पर आया

“भाई प्रकाश दस हज़ार रुपये दे दो काम है जरुरी वापस चूका दूंगा।

“देखो भाई पिछली बार में भी तुम ने पूरे पैसे नहीं लौटाए थे। ब्याज समेत पांच के आठ चुकाने थे पर तुम ने सात ही दिए थे ऐसे हिसाब नहीं चलता है। तुम उधार देने लायक नहीं हो।”

किशन ,भाभी और मेरा रोज छत पर रात में बातों कर दौर चलता। सब अपने जीवन के छोटे-छोटे किस्से सुनाते और आने वाले जीवन के हसीन सपने भी, मेरी शादी को लेकर मज़ाक भी बनाते। जब भी छुट्टियां मिलती और घर आता तो ऐसी माहौल का दोहराव होता।

इंजीनिरिंग के 3rd ईयर के एग्जाम खत्म हो चुके थे। सब घर पर निकल रहे थे कुछ समय के लिए। तभी एक पार्टी का प्लान बना गांजा,चरस, स्मैक, दारू , पाउडर, इंजेक्शन सब नशे जिन को करना हम अपनी शान समझते थे उन का पूरा इंतजाम करवाया जाना था।

पार्टी के बीच ही अचानक मेरा फ़ोन बजा।

“हेलो कौन सुनील भाई बोल रहा है। “

“हाँ भाई मैं सुनील ही बोल रहा हूँ।”

“भाई कुछ जरुरी काम था।”

“बोलो”
“भाई दस हजार रूपये चाहिए थे”

“भाई सुबह तक तो थे पर अब सारा पैसा पार्टी में लगा दिया, कल परसो तक मैं गाँव आ रहा हूँ तभी ले लेना ठीक है अब पार्टी में दिमाग भंड है ज्यादा बात समझ भी नहीं आएगी ओके बाय।”

फ़ोन कटने के साथ ही किशन के उम्मीद भी खत्म हो गई थी। सब जगह से उसे ना मिल चुकी थी। किशन सोचता मेरे पिता भी कैसे इन्सान है जो केवल बच्चे पैदा करना और उन का ब्याह करने को अपनी जिम्मेदारी का खत्म हो जाना समझते है। फिर निकाल फेंकते है घर से, जाओ कमाई करो और पेट भरो । जरुरत के वक्त एक रूपया भी नहीं दे पा रहे है, कंजूस आदमी भी कितना अजीब है ना जीवन भर कंजूसी कर के रूपये बचाता है और मरने पर सब कुछ दुसरो के लिए छोड़ जाता है।

दुनिया में सब के रूपये अपने किसी काम में बिजी है। कोई ट्रिप पर भगवान के सामने माता टेक रहा है। किसी को नया फ़ोन चाहिए। कोई कम ब्याज के कारण रूपये देने से मना कर रहा है। कोई पैसा पार्टी में नशे से भंड होकर उडा रहा है । और कोई बेटे को बेकार समझ कर उसे रूपये देने से मना कर देता है। तभी किशन का फ़ोन बज उठता है।

“हेल्लो किशन जीजाजी बोल रहे ।”

“हाँ”

“मैं सुनीता बोल रही हूँ ।”

“दीदी कैसी है तुम्हारी “

“उन्हें तो हॉस्पिटल ले गए है पापा अभी।”

अगले दिन सुबह उठा तो रात का हैंगओवर अभी उतरा नहीं था। किसी तरह दोस्तो ने एक बजे की ट्रेन में मुझे घर के लिए रवाना कर दिया । शाम 9 बजे अपने शहर पंहुचा । स्टेशन सेे ऑटो करके घर के लिए निकला दस बजे तक घर पंहुचा । घर पहुँच कर थकान की वजह से बिस्तर में लेट गया। सुबह छह बजे औरतों के रोने की आवाज़ से नीद टूटी । बाहर जाकर देखा तो किशन के घर लोग इकट्ठे हो रहे थे। सामने अर्थी पड़ी थी । किसी ने कहा बहु की तस्वीर बनाने के लिए डिटेल्स बता दो । उम्र 17 साल नाम कविता पति का नाम किशन । लोग आपस में बात कर रहे थे। कैसी आभगी थी बेचारी आठवे महीने में शिशु पेट में ही मर गया और तीन दिन तक अंदर ही रहने से बहु के पेट में जहर फ़ैल गया। पति रुपयों का इंतजाम भी नहीं कर पाया । घर वाले छोटा मोटा दर्द समझ कर टालते रहे की अभी तो एक महीना बाकी है।

-दीपक वैष्णव