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ज़िन्दगी

वो सिर्फ और सिर्फ एक दिलकश नज़ारों से भरा तालाब नहीं था, 
उसमें एक पूरी ज़िन्दगी समायी थी।

पास ही लगे पेड़ों की परछाईं को अपनी बाँहों पर उकेर
ये तालाब इस बात की ओर इशारा कर रहा था कि
ज़िन्दगी में आप जैसे हैं आपको दुनिया वैसी ही नज़र आएगी,
न कम न ज्यादा।

वहीँ दूसरी तरफ पानी के अंदर छोटी छोटी मछलियों का
खाने और छुपने की जगह ढ़ूढ़ते हुए पत्तों की छुपम छुपाई में
एक दूसरे से बिछड़ जाना और फिर अचानक खुद को
इतने बड़े तालाब में बिल्कुल अकेला पाकर अपनों की तलाश में भटकना।

तालाब की सतह पर एक हल्की और बेमतलब सी
हलचल का भी दूर तक सफ़र कर जाना
जिससे उस तालाब को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला;
और भी न जाने कई नज़रें छिपी थी उस एक नज़ारे में।

हम सबकी ज़िन्दगी भी कहीं न कहीं उस तालाब की तरह ही है।
बाहर से शायद सुन्दर और शांत दिखे
लेकिन अंदर का द्वन्द तो सिर्फ और सिर्फ दिल ही जानता है।

– अमित गुप्ता