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हिंदी मन हिंदी जीवन

मैंने आंखे खोली जबसे
देखा सुना समझा जाना
हिंदी की ममता ने मुझको
अपने बच्चे सा है माना
उसके आलिंगन में मै
सोया जगा हँसा खेला
शब्द आ आ कर हंसाते
अक्षरों का लगता मेला
मात्राओं की बारिशों में
मेरा बचपन है बीता
व्याकरण की मित्रता ने
बार कितनी हृदय जीता
सुनकर सुनाकर भी मैंने
अपनी भाषा को है जाना
बालपन से युवा वय तक
भाषा को मातृभाषा माना
विद्यालय की किताबों से
हिंदी की संतानों से
प्रेयसी के पत्रों से
और अखबारों चलचित्रों से
सभी से मेरा जुड़ना
हिंदी की ही देन है
कम शब्दों में कहूं अगर
तो जन्म से मरण तक हिंदी
तू ही मेरा हरदिन है
हिंदी मेरा मन है और जीवन है।

-राजकुमार विश्वकर्मा