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सचमुच आम

यार कब से तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ। ऑफिस से निकलने के आधा घण्टा पहले तुम्हें मैसेज कर दिया था। अपना इंस्टा चैक करो साढ़े पांच पर मैंने डीएम किया है। ऑफिस के बाहर अपनी बेटी मीरा का इंतजार कर रहे रामेश्वर ने मीरा के आते ही शिकायतों की झड़ी लगा दी।
मीरा -पापा यार मम्मी को कैसे समझाती। घर से निकलने से पहले कुल देवी की पूजा करने का बोल रही थी। बड़ी मुश्किल से जान छुड़ा कर आई हूँ।
रामेश्वर -अब तुम्हारी मम्मी को कुल देवी से क्या दिक्कत हो गई? जो उनकी क्लास लगा रही है।
मीरा–दिक्कत उन्हें कुल देवी से नहीं, आपसे है। बोल रही थी, लड़की की कल ही हल्दी की रस्म शुरु हुई है। पता नहीं तुम्हारे पापा को ऐसा क्या काम पड़ गया जो तुम्हें घोड़े पर सवार होकर बुला लिया। घर जाओगे तो आपकी क्लास लगाएगी।
रामेश्वर -पैंत्तीस साल से तुम्हारी मम्मी की क्लास में चिटींग कर रहा हूँ। कुछ नहीं होगा। चलो पीछे बैठो। आज मैं चलाऊँगा!
मीरा -अरे, नहीं पापा स्कूटी नई है! मैं रिस्क नहीं ले सकती। आप नहीं चलाएंगे!
रामेश्वर -बेटा पूरा जयपुर तुमने मेरे ही स्कूटर पर घूमा है।
मीरा -अब ये ग़लत है, आप हर आर्गुमेंट जितने के लिए ये बचपन वाला कार्ड नहीं खेल सकते हैं।
रामेश्वर और मीरा स्कूटी चलाने की बहस में इतने मगन थे कि दोनों ने देखा नहीं कब रामेश्वर के ऑफिस में काम करने वाले घनश्याम जी उनके पास आकर खड़े हो गए।

घनश्याम -और भई, बाप बेटी में किस बात पर बहस हो रही है?
घनश्याम को अपने करीब देखकर रामेश्वर और मीरा बहस करना बंद कर देते हैं। तभी घनश्याम स्कूटी के आगे रखे हुए सूटकेस को देखते हुए पूछता है।
घनश्याम -ये सूटकेस लेकर कहाँ जा रही हो बेटी? शादी में अभी पूरे दो दिन है। स्कूटी पर ही ससुराल निकल जाओगी क्या?
घनश्याम अपनी बात बोलकर खुद ही हँसने कि कोशिश करता है। घनश्याम की हँसी को बीच में रोकते हुए रामेश्वर बोलता है।
रामेश्वर -अरे, घनश्याम जी ससुराल नहीं जा रही है। घर से भाग रही थी, तो मैंने कहा भागने की क्या ज़रूरत है। मैं तुम्हें आईएसबीटी तक छोड़ देता हूँ।
रामेशवर की बात सुनकर घनश्याम की हँसी से ऑडियो गायब हो जाता है और उनका मुंह खुला रहा जाता है। ऐसा नहीं था कि रामेश्वर की बात से सिर्फ़ घनश्याम का मुंह खुला रह गाय था। रामेश्वर की बात जब मीरा के कान में पड़ती है तो उसके शरीर में दौड़ रहा रक्त का संचालन थम जाता है। हार्ट बीट एकदम शून्य के करीब पहुँच जाती है और आँखों की पुतलियाँ धीरे -धीरे बड़ी होती चली जाती है।

मीरा को अचानक घनश्याम जी के फटे मुंह से जोरदार हँसी के ठहके का साउण्ड सुनाई देता है। घनश्याम के ठहाके के साथ मीरा भी ताल मिलाकर हँसने का नाकाम प्रयास करती है। मीरा देखती है कि उसकी हँसी और घनश्याम के ठहाकों का उसके पापा पर बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ा। वह धीरे से स्कूटी का सैल्फ बटन दबाती है और अपने पापा को स्कूटी चलाने का इशारा करते हुए कहती है।
मीरा -पापा बैठो!

रामेशवर मीरा कि तरफ देखते हुए घनश्याम से नमस्कार करके स्कूटी पर बैठ जाता है। रामेश्वर और मीरा दोनों ऑफिस की पर्कींग से निकलते हुए सड़क पर आ जाते हैं। सड़क के चारों तरफ गाड़ियों का शोर फैला हुआ है। लेकिन मीरा और रामेश्वर के बीच खामोशी पसरी पड़ी है। करीब पंद्रह मिनट तक सड़क पर दौड़ रही स्कूटी पर दोनों कुछ नहीं बोलते हैं।
अचानक रामेश्वर स्कूटी को रोक देता है। अचानक स्कूटी के रुकने से मीरा को झटका लगता है। अपने आस -पास देखने पर मीरा को पता चलता है कि स्कूटी ट्रैफिक सिग्नल की लाल लाईट होने पर रूकी है।
मीरा धीरे से अपना हाथ बढ़ाकर रामेश्वर के कंधे पर रखती है और अपनी जगह से सरकते हुए रामेश्वर के थोड़ा करीब आ जाती है। मीरा के कंधे पर हाथ रखने पर रामेश्वर अपनी गर्दन को मीरा कि तरफ घूमाता है। मीरा रामेश्वर के कान में धीरे से बोलती है।

मीरा–क्या हम सही कर रहे हैं?
रामेशवर मीरा कि बात सुनकर कहता है।
रामेश्वर -आईस्क्रिम खाओगी?
मीरा, रामेश्वर के जवाब से चकित रह जाती है। मीरा कुछ कह पाती उससे पहले उसे पीछे से कार के हॉर्न की आवाज़ सुनाई देती है। मीरा ट्रैफिक सिग्नल की तरफ देखती है। सिग्नल की लाईट ग्रीन हो चुकी है। सारी गाड़ियाँ जो खामोशी से खड़ी हुई थी। अब भागना शुरु कर देती है और गाड़ीयों के साथ उसकी स्कूटी भी। मीरा खामोशी से स्कूटी पर बैठी हुई रास्ते को एकटक देखती रहती है।

रास्ते को देखते हुए उसे कुछ याद आने लगता है। वह कभी रास्ते के बाएँ तरफ तो कभी दाएँ तरफ देखती रहती है। उसे रास्ते के बाएँ तरफ एक बड़ा -सा गेट नज़र आता है। वह गेट के ऊपर लगे बड़े से बोर्ड को पढ़ती है। बोर्ड पर उसके स्कूल का नाम लिखा होता है। वह याद करती है कि कैसे वह बचपन में इस रास्ते पर बस से और कभी लेट हो जाने पर पापा के स्कूटर पर रोज आया करती थी।
रामेश्वर फिर से स्कूटी को अचानक रोक देता है। स्कूटी के अचानक रूकने से मीरा को फिर से झटका लगता है और वह अपने बचपन की ख्यालों की दुनिया से निकल कर वास्तविक दुनिया में आ जाती है। मीरा देखती है कि स्कूटी बिल्कुल आईस्क्रिम के ठेले के पास रुकी है।
रामेश्वर–भैया दो सचमुच आम देना!

सड़क किनारे बेंच पर बैठकर मीरा और रामेश्वर दोनों अपनी -अपनी आईस्क्रिम के स्वाद में डूबे रहते हैं। मीरा आईस्क्रिम खाते हुए अपने स्कूल के गेट को भी देखती रहती है। तभी मीरा को रामेश्वर की बात सुनाई पड़ती है।
रामेश्वर–मुझे लगा था तुम वैभव से शादी करोगी!
मीरा–वैभव? ओ वैभव! वह तो मेरा जूनियर था पापा।
रामेश्वर–तो क्या जूनियर से शादी नहीं कर सकते हैं?
मीरा–कर सकते हैं, क्यों नहीं कर सकते हैं।
रामेश्वर–फिर?
मीरा–फिर क्या? मतलब ठीक है, मुझे उसके साथ रहना अच्छा लगता था। घूमना अच्छा लगता था। पता है, पापा हम दोनों रजिस्टर के आखिरी पन्ने पर एक -दूसरे का सरनेम अपने -अपने नाम के पीछे लिख लेते थे। वह दिन भी कितने बचकाने थे।

रामेश्वर–फिर
मीरा–फिर… एक दिन उसने कुमार गौरव को फ्लॉप एक्टर बोल दिया। मुझे गुस्सा आ गया। मैंने उसके रजिस्टर के सरनेम वाले पेज फाड़ दिए। उसने मेरे रजिस्टर के सरनेम वाले पेज फाड़ दिए और फिर हम दोनों ने एक दूसरे से आजतक बात नहीं कि।
मीरा इतनी मासूमियत से बोल रही थी कि रामेश्वर को सुनकर हँसी आ गई। रामेश्वर बेंच पर बैठे किसी बच्चे की तरह हँसने लगा। मीरा ने अपने पापा को बच्चे की तरह हँसते हुए सिर्फ़ अपने बचपन में देखा था। मीरा कुछ सोचते हुए अचानक बोलती है।
मीरा–मम्मी से प्यार करते हैं आप?
मीरा का सवाल सुन रामेश्वर हँसना बंद कर देता है और अपनी आईस्क्रिम खाने लग जाता है। मीरा अभी भी जवाब के इंतजार में अपने पापा कि तरफ देखती रहती है। रामेश्वर आईस्क्रिम खाना छोड़कर मीरा कि तरफ बिना देखें जवाब देता है।
रामेश्वर–नहीं!
मीरा–और मम्मी?
रामेश्वर मीरा कि तरफ गर्दन घूमाते हुए कहता है।
रामेश्वर–नहीं!
मीरा–फिर?
मीरा का सवाल सुनकर अब रामेश्वर मीरा कि तरफ घूमकर बैठ जाता है और किसी टीचर की तरह समझाते हुए कहता है।

रामेश्वर–बेटा हर किसी को प्यार करने का मौका नहीं मिलता। 20 साल का था जब मेरी शादी हुई थी और तुम्हारी माँ तो 18 की भी नहीं थी। शादी के बाद तुम्हारी माँ मेरी माँ से बहु बनने की ट्रेनिंग ले रही थी और मैं अपनी पढ़ाई और पीडब्ल्यूडी की फाईलों में उलझा हुआ था। फिर तुम हम दोनों के बीच में एक पुल की तरह आई। तुम्हारे बाद तुम्हारी माँ और मैं, माँ -बाप हो गए। तुम्हें पालन की जिम्मेदारी निभाते -निभाते हम दोनों के बीच में एक तरह का लगाव हो गया था। जो आज भी है और हमेशा रहेगा।
मीरा–तो क्या अरेंज मैरिज में प्यार नहीं होता है?
रामेश्वर–इस आईस्क्रिम का क्या नाम है?
मीरा–क्या?
रामेश्वर का सवाल मीरा को समझ नहीं आता है। फिर कुछ सोचते हुए मीरा कहती है –
मीरा–”सचमुच आम”
रामेश्वर–हाँ, जैसे ये आईस्क्रिम सचमुच आम नहीं है। लेकिन इसका स्वाद बिल्कुल आम जैसा ही है। वैसे ही अरेंज मैरिज में सचमुच प्यार नहीं होता है। लेकिन प्यार बिल्कुल प्यार जैसा ही होता है।
मीरा अपने पापा कि बात सुनकर बस उनको एकटक देखते रह जाती है। तभी रामेश्वर मीरा को देखते हुए बोलता है।
रामेश्वर–चलो अब लेट हो रहे हैं।
रामेश्वर बेंच से उठकर स्कूटी के पीछे वाली सीट पर बैठ जाता है। मीरा अपने पापा को पीछे वाली सीट पर बैठा देख हैरान रह जाती है।
मीरा–पीछे क्यों बैठ गए? चलाओगे नहीं?
रामेश्वर–नहीं, आगे की मंज़िल और रास्ते दोनों तुम्हारे हैं।

मीरा स्कूटी स्टार्ट करकर आईएसबीटी का रास्ता पकड़ लेती है। लगभग आधे घण्टे बाद मीरा स्कूटी ठीक अपनी बस नम्बर के पास रोकती है। रामेश्वर स्कूटी से उतरते हुए आगे रखा सूटकेस उठा लेता है। मीरा और रामेश्वर बस की तरफ बढ़ते हैं। मीरा बस में चढ़कर अपना सीट नम्बर खोजती है और सीट पर अपना सूटकेस रखकर वापस बस से नीचे उतर कर पापा को देखने लगती है। लेकिन उसे उसके पापा नज़र नहीं आते हैं। मीरा कभी बस के आगे कभी पीछे अपने पापा को ढूँढती है। तभी मीरा को पीछे से उसके पापा कि आवाज़ सुनाई देती है।
रामेश्वर–लो कोल्ड ड्रिंक और चिप्स है, रास्ते में काम आएंगे।
मीरा अपने पापा को एकटक बस देखती रह जाती है। तभी मीरा को बस के हॉर्न की आवाज़ सुनाई देती है। वह एक बार फिर से बस के गेट की तरफ बढ़ती है। बस पर चढ़ने से पहले वह अपने पापा से कहती है।
मीरा–पापा मैं आपको हग कर लूँ?
रामेश्वर–नहीं बेटा, अगर तुमने मुझे हग कर किया तो मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा!
मीरा अब बस की पहली सीढ़ी पर चढ़ जाती है। फिर कुछ सोचते हुए पीछे पलट कर अपने पापा से कहती है।
मीरा–आज आप मुझे कुछ नहीं कहेंगे? ठीक से जाना! पहुँचकर फोन कर देना! सही से रहना! कुछ भी नहीं?
रामेश्वर–नहीं मीरा, क्योंकि ज़िन्दगी जीने का कोई नियम नहीं होता। हाँ, इतना ज़रूर याद रखना ज़िन्दगी को अपनी किस्मत मानकर मत जीना! कुछ भी हो जाए बस याद रखना जयपुर में तुम्हारा एक घर है।

रामेशवर की बात पर मीरा अपना सर हाँ में हिला देती है। तभी कंडेक्टर आकर बस का गेट लगा देता है। अब मीरा और रामेश्वर एक दूसरे को काँच वाले गेट से देखते रहते हैं। थोड़ी देर में रामेश्वर देखता है कि मीरा बस के साथ आगे निकल जाती है। अब रामेश्वर को बस धुँधली दिखाई देने लगती है। रामेश्वर देखता है कि उसकी आँखों में आँसू भर आए हैं। रामेश्वर अपनी जगह से बढ़ते हुए स्कूटी की तरफ जाने लगता है। तभी उसके मोबाइल पर मैसेज आता है। “आईस्क्रिम खाओगे?”

रामेश्वर पीछे पलटकर देखता है। बस रुकी हुई है और मीरा सूटकेस लेकर रामेश्वर की तरफ चली आ रही है। मीरा और रामेश्वर आईएसबीटी पर एक आईस्क्रिम के ठेले के पास रुकते हैं।
मीरा– दो “सचमुच आम देना!”

रवि वर्मा