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ये कैसी राह दिखाते हैं

जीवन की आपाधापी में हम
कुछ व्यर्थ का रोज चलाते हैं
कभी धर्म-कर्म, कभी निष्ठा पर
हम उँगली रोज उठाते हैं

हम कीचड़ से तो बचते हैं
दूजे पर जरूर गिराते हैं
हम व्यर्थ तर्क ही करते हैं
व्यंग्यों के बाण चलाते हैं

अपने हित की खातिर कितने
दूजे का रक्त बहाते हैं
हम जात-पात का ढोंग सदा
व्यर्थ में यूँ ही बजाते हैं

हम अच्छे बनने के आडम्बर में
झूठी सी शान दिखाते हैं
शांति की तो बात सदा
हिंसा करके दिखलाते हैं

हम साथ असत्य का देते हैं
और सत्य का पाठ पढ़ाते हैं
हम कार्य रावण सा करते हैं
आदर्श राम का दिखलाते हैं

भारत का भविष्य है बच्चों में
भविष्य का खून बहाते हैं
रक्षा करते हैं धर्म की
और अधर्म की राह चलाते हैं

ये कैसी राह दिखाते हैं
ये कैसी राह दिखाते हैं…

– श्वेता पांडेय