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या तो चाय या मैं!

उसकी पहली प्रेमिका ने उसे धोखा नहीं दिया था। बल्कि वो तो हमेशा उसे संभालती थी गिरने से, भटकने से…

फिर हुआ कुछ यूं कि सेहत नासाज रहने लगी और सबसे मिलना जुलना बंद हो गया। ताल्लुकात बैचेन हो उठे और एक बिन्दु पर आकर ताल्लुकात और बेचैनियां दोनों खत्म हो गईं।

तब उसके जीवन मे आई दूसरी प्रेमिका, जो चाहती थी उसे बचाना दुनिया कि हर नकारात्मक्ता से, जैसे चिड़िया बचाती है बारिश से अपने घोंसले को…

एक दिन दूसरी प्रेमिका के साथ बैठे हुए याद आई उसे पहली मोहब्बत, और साथ आईं वो हिचकियां जो पानी पीने से नहीं याद करने वाले का नाम लेने से जाती हैं।

दो मोहब्बतों के बीच मे फंसा इंसान कितना कमजोर, लाचार और लुटा हुआ महसूस करता है, ये उसे उसी दिन महसूस हुआ जब उसकी दूसरी प्रेमिका ने गुस्से में बोला- ‘कल से या तो चाय या मैं’