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मैं

कभी खिलखिलाती हंसी हूं मैं
कभी गुनगुनाती धुन हूं मैं
मैं ही वो मोती सा अनमोल आंसू हूं
और मैं ही अपने जीवन में रंग सजाती हूं

भोर की तरह शांत हूं
शाम की तरह चंचल भी
सुबह की तरह चहकती हूं
कभी रात की तरह सिसकती हूं
ठंड के जैसे शीतल हूं
तो पतझड़ जैसी वीरान भी मैं
जमीन के जैसी मैली कभी
तो कभी पानी जैसी बहती हूं

हवा की तरह उड़ती भी हूं
और कहीं बिजली जैसी गरजती भी हूं
आग की तरह चमकती हूं मैं
और मैं ही पायल की तरह खनकती हूं,
शोर का भी आगाज़ हूं
और मैं ही इस नीले आसमान का लिबास हूं

-अनघा तेलंग