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प्रेम एक पीड़ा

ये प्रेम एक विछोह तो है
खुद को खुद से दूर करना
है नही इतना सहज
दूसरे की प्रेम पीड़ा
अपने हृदय में पल्लवित करना
आसान क्यों समझ रहे ये
प्रेमरुपी मार्ग को
दूरगामी दृष्टिकोण से
ये पथ नही पुष्प भरा
प्रेम सिर्फ प्रेम नहीं
कल्याण है ये समाज का
देह की परम्परा नही
ये प्रतीक है विश्वास का
यौवन का समागम
प्रेम का अनुयायी नहीं
पृथ्वी की रक्षा के लिए
ये रुप है महादेव का
पी गए जो हलाहल
भूमि के कल्याण को
प्रेम वो वैभव है जो
बाँसुरी से गूँजता
मन , आत्मा के लिये
जो वृंदावन का श्याम है
प्रेम सिर्फ ईश्वर है
प्रेम अलौकिक धाम है

श्वेता पांडेय