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दोस्ती

मुझसे भी बढ़कर कुछ बड़ी थी दोस्ती।
सुरूर ए दिल पर यूँ चढ़ी थी दोस्ती ।

लोग उसे प्यार और बस प्यार कहते थे,
लेकिन हम जानते है प्यार से बड़ी थी दोस्ती।

शुक्रिया और गुस्ताखियों का कहीं नामोनिशां ही न था,
हम दोनों के जानिब कुछ यू खड़ी थी दोस्ती ।

कुछ गलतफहमियाँ थी,कुछ लोग थे फिजूल से,
इसलिए चौराहे पर कल खड़ी थी दोस्ती।

एक तूफान आया बिल्कुल शताब्दी की तरह,
और फिर ; दोनों के दरमियाँ
लहूलुहान पड़ी थी दोस्ती।

वो जो शख्स है उसने हमेशा दवा दी थी हमें,
शायद इसलिए अब तक जिन्दा खड़ी थी दोस्ती।

– पंकज कसरादे