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उम्मीद

उठो मेरे हौसले,
अब मत ऊँघो…
लो वही अंगड़ाई,
एक बार फिर से
बेफिक्री की…इश्क़ की…
जिन्दा रहने की नहीं..जीने की…

उठो…
उठो और देखो
तुम्हे जगाने, किरणों में छुपकर
उम्मीद आई है।

– जितेन्द्र परमार