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अपाहिज

इस चलते-फिरते शहर में 
इस तरह अकेला फील हो रहा था
जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया हो,,,,

दिल के टूटने पर वाकई दुःख होता है….
अब कुछ नहीं बचा पास में, मेरे ,,,,

खाई के किनारे बैठा ये सब सोच ही रहा था

अचानक पीछे से इक आवाज़ आई।।।।
भैया संभल कर……खाई बहुत गहरी है….गिर जाओगे

मन में आ रहे ख्याल अचानक से धुंधले पड़े
पीछे मुड़कर देखा तो एक अपाहिज पॉपकॉर्न का पैकेट बेच रहा था |

किसी के जाने से ये दुनिया तो रूकती नहीं है साहब,
जब मैं चलने की हिम्मत कर रहा हूँ तो….

आप भी चलिये…. वरना पीछे रह जाएंगे।।
अंग से अपाहिज उस आदमी ने मेरे मन को अपाहिज होने से बचा लिया था |

– शिल्पी मिश्रा